अनुज गोयल


ऐसे समय में जब कि राष्ट्र अपनी सीमाएँ, विचारधाराएँ और नीतियाँ और कड़ी करते जा रहे हैं, संस्कृतियों के मिलने को गुजरे वक्त की बात समझा जाता है| लेकिन इक्कीसवीं सदी में दिल्ली के युवाओ में कोक स्टूडियो पाकिस्तान की लोकप्रियता इस मान्यता का खण्डन करती हॆ।

भारतीय शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गतदक्षिण एशियाके बारे में ज्यादा नहीं बताया जाता है| भूगोल में महाद्वीपों की पढाई के दौरान हम एशिया और एशिया के कुछ देशों (चीन, रूस, भारत तथा अन्य कुछ देश) के बारे में पढ़ते हैं| एक-दो छंदों में दक्षिण एशिया के बारे में लिखा हुआ होता है जो कि अपर्याप्त है| हाँ, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC – सार्क) के बारे में पढ़ते हुए एक ऐसे दक्षिण एशिया के बारे में पढ़ते हैं जो आठ देश (नामतः अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, भारत, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका) मिलकर बनाते हैं| किन्तु उसमें भी यह आठ देश अलग-अलग काम करते हैं और हम सिर्फ संगठन का किरदार पढ़ते हैं| इन सब देशों की अपनी भू-राजनीतिक सीमाएँ हैं| ऐसे में दक्षिण एशिया की एक संयुक्त समझ का होना मुश्किल है| यह और भी मुश्किल है जब हम सरकारों के किरदारों को इस सन्दर्भ में समझने का प्रयास करें| कितने ही उदाहरण हैं जहाँ एक देश के हित की बात अन्य देशों के अनहित की बात होती है| तो फिर दक्षिण एशिया की समझ कैसे हो?

यह समझ हमें विभिन्न समानताओं और विभिन्नताओं में मिलती है| संस्कृतियों, भाषाओं, बोलियों, लिपियों, खान-पान, धर्मों की समानताओं और विभिन्नताओं में मिलती है| और इन विभिन्नताओं को समायोजित करने की क्षमताओं में| कहीं कहीं यह क्षमताएँ भी उन्हीं समानताओं, सहिष्णुता एवं आपसी भाईचारे के भाव से आती हैं| जाने कितनी ही सभ्यताओं, मान्यताओं, धर्मों के लोग इस भौगोलिक क्षेत्र में आए और बस गए| ऐसे में विभिन्नताओं का होना जायज है| दिल्ली इसका एक अच्छा उदाहरण है| भारत देश की तमाम जनता यहाँ रोज़गार और शिक्षा के अवसर तलाशते हुए आती है| इसी आप्रवासन के कारण दिल्ली में विभिन्न धर्म, संस्कृति एवं भाषा के लोग रहते हैं| दक्षिण एशिया में भी इसी प्रकार भांति-भांति के लोग आए और बसे| किन्तु यही कारण समानताएँ भी लाते हैं| जहाँ प्रवासन विभिन्नताओं का कारण बनता है, वहीं इसी कारण समानताएँ भी आती है| तमाम तरह के लोग जब हर जगह से आते हैं और आपस में घुलते-मिलते हैं तो संस्कृतियाँ भी मिलती हैं और नई संस्कृतियाँ भी उत्पन्न होती हैं| यह एक लम्बी प्रक्रिया है, और भारत और दक्षिण एशिया का इतिहास भी इसका साक्षी है|यही समानताएँ विभिन्नताएँ हमारी दिनचर्या से लेकर त्योहारों तक में दिखती हैं| दक्षिण एशिया के तमाम क्षेत्रों में विभिन्न त्योहारों पर घरों के आंगनों में फर्श पर रंगोली बनाई जाती है| घरों में त्योहारों, या खास उपलक्षों पर खासकर महिलाएँ हाथों पर मेहंदी लगाती हैं| यह सिर्फ भारत के हिस्सों तक सीमित नहीं है|

आज के समय में हालांकि शासन प्रबंध के बढ़ने सरकारों के शक्तिशाली नियंत्रण के कारण एक देश से दूसरे देश में आना-जाना या प्रवासन मुश्किल है| प्रवासन को दिक्कत समझा जाता है| भारत में ही देख लीजिए| राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर या राष्ट्रीय नागरिकों का रजिस्टर भी तो प्रवासन को रोक ही रहे हैं| मात्र एक ही अंतर है| अब कानून के तहत प्रवासन और गैर-कानूनी प्रवासन की दो श्रेणियाँ हैं और सरकार के द्वारा एक ही स्वीकृत है| स्वीकृत के अन्दर भी पासपोर्ट, वीज़ा जैसी तमाम औपचारिकताएँ हैं जो कि फिर से इसी प्रकार के प्रवासन पर रोक लगाती हैं| ऐसे में कुछ इस प्रकार के इन्तजामों का महत्त्व और बढ़ जाता है जो सरकारों की दखलंदाजी को पार कर जाएं या जो सरकारों की दखलंदाजी का सामना किए बिना भू-राजनीतिक सीमाओं को चीरते हुए एक देश से दूसरे देशों में जा सके| कला, संगीत, कविताएँ, कहानियाँ, खेल एवं ज्ञान-विज्ञान इत्यादि में ऐसे तमाम उदाहरण हैं| हम कोक स्टूडियो पाकिस्तान को एक ऐसे ही उदाहरण की तरह देख सकते हैं|

कोक स्टूडियो एक मशहूर म्यूजिक टेलीविज़न सीरीज है जिसमें प्रत्यक्ष रूप में रिकॉर्ड  किया हुआ संगीत दिखाया-सुनाया जाता है| शास्त्रीय, लोक, पॉप, रॉक से लेकर हिप-हॉप गीतों को रिकॉर्ड किया जाता है| इसका विचार ब्राज़ील के शो एस्तुडियो कोका-कोला (Estúdio Coca-Cola) से लिया गया| सन 2008 में पाकिस्तान में यह पहली बार कोका-कोला कंपनी (Coca-Cola Company) तथा फ्रीक्वेंसी मीडिया (Frequency Media) के सह-निर्माण के रूप में प्रसारित किया गया| रिकॉर्डिंग पाकिस्तान के सबसे ज्यादा आबादी वाले शहर कराची में होती है जिसका संगीत और संगीत-निर्माण में एक लम्बा इतिहास रहा है| कोक स्टूडियो पाकिस्तान के मुख्य घटकों में रोहैल हयात (जो कि कोक स्टूडियो पाकिस्तान के पहले 6 सीज़न और बारहवें सीज़न के निर्माता रह चुके हैं), तमाम लोकप्रिय गायक इसके हाउस बैंड रहे हैं|

युवा पीढ़ी के लिए कोक स्टूडियो वही पुराने लिखे गीतों कलामों को एक नए ढंग से प्रस्तुत करता है जिसमें रॉक म्यूजिक से लेकर हिपहॉप तक को डाला गया है| इस तरह से यह पुराने और नए मानकों का फ्यूज़न है|”

कोक स्टूडियो पाकिस्तान दुनिया भर में अपने संगीत को लेकर मशहूर है| इसकी लोकप्रियता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि अपने तीसरे सीजन तक आते-आते यह दुनिया में यूट्यूब (YouTube) पर ग्यारहवाँ सबसे ज्यादा देखा जाने वाला चैनल यूरोप में गूगल (Google) पर सबसे ज्यादा ढूँढा जाने वाले शब्दों में से एक बन गया| दिल्ली में भी यह बहुत पसंद किया जाता हैखासकर युवाओं में| दिलचस्प बात है कि पाकिस्तान-विरोधी भावना रखने वाले कुछ लोग भी कोक स्टूडियो पाकिस्तान को बेहद पसंद करते हैं| कोक स्टूडियो पाकिस्तान की दिल्ली के युवकों में लोकप्रियता को थोड़ा और विस्तार से समझने के लिए हमने एक छोटा सा सर्वे किया| इस सर्वे में मात्र 135 लोगों ने ही जवाब दिया है| हम यह दावा नहीं करते हैं कि यह सर्वे दिल्ली की समूची युवा पीढ़ी को दर्शाता है| यह सर्वे सिर्फ कुछ जानकारी हासिल करने के लिए पर्याप्त है| कुल 135 में से 9 लोगों ने कहा कि उन्हें कोक स्टूडियो पाकिस्तान के बारे में कुछ नहीं पता है| हम उन 9 को अलग रखते हुए उन 126 लोगों के जवाबों को पढ़ते हैं जिन्हें कोक स्टूडियो पाकिस्तान के बारे में पता है| इन 126 में सभी 20 से 35 वर्ष की उम्र के हैं| जहाँ 61 व्यक्ति 20 से 25 वर्ष की उम्र के हैं, वहीं 63 व्यक्ति 25 से 30 वर्ष की उम्र के हैं|

तालिका 1: ‘कोक स्टूडियो पाकिस्तान के बारे में कैसे पता चला?’ प्रश्न के उत्तरों का एक सारांश

पसंदीदा कलाकार ने कोक स्टूडियो पाकिस्तान में गाया या बजाया

इन्टरनेट पर ब्राउज करते हुए कोक स्टूडियो पाकिस्तान का लिंक मिला

यूट्यूब के द्वारा सिफारिशों में कोक स्टूडियो पाकिस्तान का लिंक मिला

लोगों ने बताया

संख्या

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कुल

126

*इनमें से एक ने यह भी कहा कि वे कोक स्टूडियो पाकिस्तान को विश्व संगीत में लम्बे समय से अपनी दिलचस्पी को लेकर भी जानते हैं|

ज़्यादातर लोगों ने जहाँ इन्टरनेट पर ब्राउज या सर्च करते हुए कोक स्टूडियो पाकिस्तान को पहली बार जाना, वहीं बाकी लोगों के द्वारा या यूट्यूब के द्वारा सिफारिशों में लिंक के द्वारा भी काफी लोग कोक स्टूडियो पाकिस्तान को जानते हैं| 126 में से केवल 3 ने कहा कि उन्हें कोक स्टूडियो पाकिस्तान पसंद नहीं है| 126 में से 24 ने कहा कि वे रोज़ाना कोक स्टूडियो पाकिस्तान को सुनते हैं, वहीं 40 ने स्वीकारा कि वे साप्ताहिक तौर पर इसका आनंद लेते हैं|

कुछ पसंदीदा गीतों में लोगों ने छाप तिलक, आफरीन-आफरीन, रंजिश ही सही, मन कुन्तो मौला, ताजदार--हरम, कंगना, अलिफ़ अल्लाह, रंग, इत्यादि का ज़िक्र किया| वहीं पसंदीदा कलाकारों में राहत फ़तेह अली खान, आबिदा परवीन, फरीदा खानम, अली सेठी, आतिफ असलम, साईं ज़हूर फरीद अयाज़ कव्वाल बच्चों  का नाम लिया| खासकर रोहैल हयात के संगीत-निर्माण संगीत से जुड़ी उनकी समझ की भी काफी तारीफ़ की|

जब उनसे पूछा गया कि उन्हें कोक स्टूडियो पाकिस्तान में क्या पसंद है, तो लोगों ने उसके फ्यूज़न संगीत, सूफी संगीत के बारे में बताया| कुछ ने कहा कि वे इसे इसलिए भी पसंद करते हैं क्योंकि यह बहुत रूहानी संगीत है और उससे अलग है जो हम ज़्यादातर सुनते हैं| जब उनसे इसकी लोकप्रियता के बारे में पूछा गया तो उन्होंने सांस्कृतिक और भाषाई समानताओं के द्वारा इसका उत्तर दिया| ज़्यादातर लोगों का मानना था कि समान लय-ताल, बाजों और साधनों का इस्तेमाल, भाषा की समझ, लोक-गीत, इत्यादि गीतों को श्रोता के सुनने-समझने के लिए सरल बनाते हैं| रोहित, जो कि हिन्दू कॉलेज के छात्र हैं, कहते हैं, “हालांकि ज़्यादातर गीत उर्दू, पंजाबी, पारसी, इत्यादि में हैं, किन्तु आप ज़्यादातर गीतों को आसानी से समझ सकते हैं| ‘खबरम रसीदाको ही ले लीजिए| काफी हद तक आप गीत को सुनकर-देखकर यह समझ सकते हैं कि क्या गाया गया है| इन्टरनेट पर आपको इसका अंग्रेजी अनुवाद आसानी से मिल जाता है| दिलचस्प यह भी है कि जिस तरह के गीत वे गाते हैं और उन गीतों का मतलब, सन्दर्भ, हमारे यहाँ गाए जाने वाले गीतों से काफी मिलते-जुलते हैं| कितने ही ऐसे गीत हैं जो भारत पाकिस्तान दोनों राष्ट्रों में गाए जाते हैं| मस्त कलंदर भारत मेंया कम से कम उत्तर भारत के कई हिस्सों में लोकप्रिय है| आमिर खुसरो के लिखे कलाम बॉर्डर के इस पार भी पढ़े-सुने जाते हैं और उस पार भी| भारतीय सिनेमा में भी इन गीतों को रखा गया है| ....हालांकि पिछले कुछ सालों में आपसी संबंधों के बिगड़ने और भारतीयों में पाकिस्तानी- विरोधी भावनाओं के पनपने के कारण इन सभी पाकिस्तानी गायकारों-संगीतकारों एवं अदाकारों को अब बॉलीवुड में बैन कर दिया गया है| इसके अलावा, चूँकि इतिहास में अविभाजित भारत में लोक संगीत का विकास हुआ, तो ज़ाहिर है कि समानताएँ बहुत हैं| इन्हीं समानताओं और निस्संदेह अच्छे संगीत के कारण पाकिस्तान का कोक स्टूडियो भारत या दिल्ली में इतना सुना जाता है|”

अनामिका, जो कि श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स की छात्रा रह चुकी हैं, बताती हैं, “कोक स्टूडियो पाकिस्तान रूह को छू जाने वाला संगीत बनाता रहा है| ऐसे संगीत रूहानी रिज़ा देते हैं| जैसे जिस्मानी रिज़ा के लिए हम सब भोजन करते हैं, पानी पीते हैं, वैसे ही रूहानी रिज़ा के लिए भी हमें कुछ कुछ करना पड़ता है| कुछ लोग किताबें पढ़ते हैं, कुछ लिखते हैं, कुछ चित्रकला करते हैं, कुछ संगीत सुनते हैं| मैं स्वयं ख़ासकर कव्वाली में दिलचस्पी रखती हूँ| मैंने अमीर  खुसरो का लिखा पढ़ा है| मुझे नहीं लगता कि खुसरो से बेहतर प्रेम पर किसी ने लिखा है| क़व्वाली भी खुसरो ने ही शुरू की थी| कोक स्टूडियो (पाकिस्तान) में काफी सूफी कलामों का फ्यूज़न प्रस्तुत किया जा चुका है जो मुझे अच्छे लगते हैं| इनमें भी कई खुसरो ने लिखे हैं और शायद उन्हें संगीतबद्ध भी किया है| ‘रंग’, ‘कंगना’, छाप तिलककोक स्टूडियो में गाये जा चुके हैं| युवा पीढ़ी के लिए कोक स्टूडियो वही पुराने लिखे गीतों कलामों को एक नए ढंग से प्रस्तुत करता है जिसमें रॉक म्यूजिक से लेकर हिपहॉप तक को डाला गया है| इस तरह से यह पुराने और नए मानकों का फ्यूज़न है|”

हमने 7 गायकारों की फोटो दिखाकर लोगों से पूछा कि वे इनमें से किन-किन को पहचानते हैं| यह प्रश्न इस बात को समझने के लिए था कि कितने लोग कोक स्टूडियो पाकिस्तान के एपिसोड यूट्यूब या कोक स्टूडियो पाकिस्तान की वेबसाइट पर देखते हैं| इन 7 गायकारों में फ़रीद अयाज़-अबु मुहम्मद, कुरातुलैन बलौच, फरीदा खानम, आबिदा परवीन, राहत फ़तेह अली खान, अली सेठी और जाफ़र ज़ाएदी (काविशबैंड से) शामिल हैं| यह फोटो इन गायकारों के कोक स्टूडियो पाकिस्तान में गाए गीतों के वीडियो से ही निकाले गए हैं| 126 में से केवल 3 ही व्यक्ति सभी सातों गायकारों को सही से पहचान सके और 15 एक को भी नहीं| 104 व्यक्ति ऐसे थे जो सात में से चार या उससे कम गायकारों को ही पहचान सके| जाफ़र ज़ाएदी या उनके बैंड को केवल 18 व्यक्ति ही जानते थे| ज़ाएदी कोक स्टूडियो पाकिस्तान के तीन सीज़न में आ चुके हैं| यह दर्शाता है कि शायद ज्यादातर ने कोक स्टूडियो पाकिस्तान के एपिसोड देखे नहीं हैं| किन्तु फिर भी उसके संगीत का लुत्फ़ उठा रहे हैं|

इसी प्रकार कोक स्टूडियो पाकिस्तान एक ऐसा माध्यम बन चुका है जो इन्टरनेट के जरिए बिना किसी सरकारी रोक-टोक के बॉर्डर पार देखा-सुना जाता है| हालांकि इसमें पाकिस्तान की सांस्कृतिक विविधताओं की कितनी असलियत दिखती है, यह सवाल हमें इन चीजों को और गहराई से देखने के लिए बाध्य करता है| सर्वे में सोफिया टिपण्णी करती हैं, “..यदि आप गायकों या बाजे बजाने वालों को देखें तो वे चमकदार, महंगे या फैशनपरस्त कपड़े पहने या महंगे आभूषण पहने हुए गाते-बजाते हैं| यह पाकिस्तान के असल माहौल से काफी अलग है|” यह एक महत्त्वपूर्ण बात है, लेकिन इस लेख की सीमा से बाहर है| किन्तु फिर भी लिंग, जातीयता, भाषा, बोली के आधार पर सम्मिलित करने वाली कई प्रवृत्तियाँ हमें कोक स्टूडियो पाकिस्तान में मिलती हैं| सन 2016 में बधिर व्यक्तियों के मनोरंजन के लिए कोक स्टूडियो ने एक ऐसा सोफा इस्तेमाल किया जिसमें सैंकड़ों छोटे-छोटे थरथराने वाले यंत्र और लाइटें लगी हुई थीं जो संगीत के साथ-साथ काम करती थीं| ग्यारहवें सीजन के हम देखेंगेगीत में हम लकी एवं नग़मा नामक दो ट्रांसजेंडर गायकारों को जो मैं भी हूँ और तुम भी होपंक्तियाँ गाते हुए देखते हैं| बारहवें सीजन में तबलावादक एवं तालवादक वीरू शान कोक स्टूडियो की पहली महिला हाउस बैंड सदस्या बनी|

खैर, ऐसे समय में जब कि राष्ट्र अपनी सीमाएँ, विचारधाराएँ और नीतियाँ और कड़ी करते जा रहे हैं, संस्कृतियों के मिलने को गुजरे वक्त की बात समझा जाता है| लेकिन इक्कीसवीं सदी में दिल्ली के युवाओ में कोक स्टूडियो पाकिस्तान की लोकप्रियता इस मान्यता का खण्डन करती हॆ। भूमंडलीकरण एवं डिजिटल तकनीक जिन्हें संस्कृतियों की एकरूपता फैलाने का दोषी माना जाता है, ऐसे समय में एक नए फ्यूज़न के माध्यम बन कर उभरते हैं| जब सरकार आदान-प्रदान, व्यापार व प्रवासन में रोक-टोक लगाती है, भूमंडलीकरण के कुछ ऐसे परिणाम भू-राजनीतिक सीमाओं को लांघ जाते हैं जिसमें सरकारी तंत्र की बड़जोड़ी नहीं चल पाती है| ऐसी ही पहलों के द्वारा निर्बद्ध संवाद चलता रहेगा| ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि आगे आने वाली युवा पीढ़ी समाज को किस तरह आगे लेकर चलती है| फ़िलहाल के लिए हम कोक स्टूडियो के गीतों का आनंद ले सकते हैं|


अनुज गोयल अर्थ शास्त्र के स्वतंत्र शोधकर्ता तथा डिसैबिलिटी राइट्स एक्टिविस्ट हैं। उन्होंने दिल्ली स्कूल आफ इकोनोमिकस से अर्थ शास्त्र में एम ए किया है।