जावेद अनीस
दरअसल इस बार उनकी स्थिति पहले की तरह उतनी मजबूत नहीं है। इस बार उनकी सरकार नये भाजपाई “ज्योतिरादित्य सिंधिया” पर निर्भर है जो प्रदेश भाजपा में एक नये पावर सेंटर बनकर उभरे हैं। सरकार में भी गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा उनके प्रतिद्वंदी बनकर उभरे हैं। ऐसे में चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद उनका मिजाज बदला हुआ है। वे अपने आपको पहले से अलग पेश करने की कोशिश कर रहे हैं और इस बार अधिक खुले तौर पर लगातार आक्रमक हिन्दुतत्व की तरफ बढ़ते हुये दिखाई पड़ रहे हैं।
हमारे समाज में प्रेम विवाह की स्वीकार्यता नही है। ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को जीवन साथी चुनने का विकल्प नहीं देना चाहते, वे उनकी शादी अपनी मर्जी से खुद के धर्म, जाति, गौत्र में ही करना चाहते हैं। अगर मामला धर्म से बाहर का हो तो स्थिति बहुत गंभीर बन जाती है। ऐसी शादियों को बगावत ही नहीं गुनाह की श्रेणी में रखा जाता है। ऐसे प्रेमी जोड़ों के लिये पूरा समाज ही खाप पंचायत बन जाता है। अंतर्धार्मिक विवाह करने वालों को सामाजिक बहिष्कार और सम्मान के नाम पर हत्या तक का सामना करना पड़ता है। ऐसे में उन्हें थोड़ी बहुत संरक्षण की उम्मीद राज्यव्यवस्था से ही थी लेकिन अब वहां भी “लव जिहाद” नाम सियासी फितूर हावी है जिसके बहाने अंतर्धार्मिक विवाहों को नियंत्रित करने के वैधानिक रास्ते तलाशे जा रहे हैं।
पिछले दिनों उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश की भाजपा सरकारों ने अध्यादेश के माध्यम से तथाकथित ‘लव जिहाद’ के खिलाफ कानून बना दिया है। मध्यप्रदेश में “लव जिहाद” और इस पर कानून बनाने की बात करना भाजपा और संघ परिवार का एजेंडा तो है ही, साथ ही यह शिवराजसिंह चौहान का अपनी सरकार की कमजोरियों और पार्टी की आंतरिक दबावों को साधने की कवायद भी है।
तथाकथित “लव जिहाद” के ख़िलाफ़ मध्यप्रदेश सरकार के विधेयक को 'धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2020' नाम दिया गया है। पिछले 9 जनवरी 2021 को राज्यपाल कि मंजूरी मिलने के 48 घंटे बाद ही इसे लागू कर दिया गया। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने इसे मध्यप्रदेश में एक नये युग कि शुरुआत बताते हुये कहा कि “हम हमारी बेटियों की सुरक्षा और भविष्य के साथ किसी भी प्रकार का खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं करेंगे”। इस क़ानून के तहत किसी को प्रलोभन, बहला फुसलाकर या जबरदस्ती धर्मांतरण और शादी करने पर अधिकतम 10 साल तक की सजा और 50 हजार रुपए तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है। साथ ही यह गैर जमानती अपराध भी होगा। ऐसी शादियों को अमान्य घोषित किया जा सकता है। इस क़ानून में इस बात का भी प्रावधान होगा कि अगर कोई अंतर्धार्मिक जोड़ा शादी करते हुये धर्म परिवर्तन करना चाहते हैं तो इसके लिये पहले उन्हें 60 दिन पहले जिला मजिस्ट्रेट को आवेदन देना होगा। जिसके बाद ज़िला मजिस्ट्रेट और कलेक्टर इस मामले की पड़ताल करेंगे कि कहीं धर्म परिवर्तन किसी दबावों में तो नहीं किया जा रहा है।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में ‘धर्म परिवर्तन निरोधक कानून’ बहुत पहले से ही मौजूद है। शिवराजसिंह चौहान की भाजपा सरकार ने ही 2013 में इसमें संशोधन करते हुये इसे और ज्यादा सख़्त बना दिया था जिसके बाद से प्रदेश का कोई नागरिक अगर अपना मजहब बदलना चाहे तो इसके लिए उसे जिला मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी होगी। अगर धर्मांतरण करने वाला या कराने वाला ऐसा नहीं करता है तो इसके लिये सजा का प्रावधान है। सन 2013 में हुये संशोधन के बाद “जबरन धर्म परिवर्तन” पर जुर्माने की रकम दस गुना तक बढ़ा दी गई थी और कारावास की अवधि भी एक से बढ़ाकर चार साल तक कर दी गई थी। यह संशोधन हिन्दुतत्ववादी संगठनों द्वारा ईसाई समुदाय पर आदिवासियों के धर्मांतरण के आरोप को ध्यान में रखते हुये किया गया था। प्रदेश के ईसाई संगठन आरोप लगाते रहे हैं कि मध्यप्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा है और ईसाईयों के खिलाफ “जबरन धर्मांतरण” के फर्जी केस थोपे जा रहे हैं। 2020 में इस कानून में एक बार फिर संशोधन किया गया है जिसे “लव जिहाद” के खिलाफ कानून के तौर पर पेश किया जा रहा है। इस खेल में नया विषय यही है कि इस बार मुख्य निशाने पर ईसाई नहीं मुस्लिम समुदाय है।
असुरक्षित शिवराज की छवि बदलने की कवायद
तमाम तिकड़मों के बाद शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुये हैं। इससे पहले वे 2005 से 2018 तक लगातार 13 सालों तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके है। दिसंबर 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था और उनकी जगह कांग्रेस के कमलनाथ मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन पन्द्रह महीने बाद ही शिवराज एक बार फिर वापसी करने में कामयाब रहे। शिवराजसिंह चौहान भाजपा के नरमपंथी नेता माने जाते रहे हैं। लेकिन अब ऐसा लगता है कि नरम हिन्दुतत्व को उन्होंने कांग्रेस के भरोसे छोड़ दिया है। दरअसल इस बार उनकी स्थिति पहले की तरह उतनी मजबूत नहीं हैं। इस बार उनकी सरकार नये भाजपाई “ज्योतिरादित्य सिंधिया” पर निर्भर है जो प्रदेश भाजपा में एक नये पावर सेंटर बनकर उभरे हैं। सरकार में भी गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा उनके प्रतिद्वंदी बनकर उभरे हैं। ऐसे में चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद उनका मिजाज बदला हुआ है। वे अपने आपको पहले से अलग पेश करने की कोशिश कर रहे हैं और इस बार अधिक खुले तौर पर लगातार आक्रमक हिन्दुतत्व की तरफ बढ़ते हुये दिखाई पड़ रहे हैं।
तथाकथित “लव जिहाद” के खिलाफ कानून के बाद शिवराजसिंह चौहान ने ‘गो-कैबिनेट’ गठित करने का निर्णय लिया है जिसके आदेश जारी कर दिए गये हैं। अपने तरह के देश के इस पहले कैबिनेट में मुख्यमंत्री के अलावा प्रदेश के पशुपालन, वन, पंचायत और ग्रामीण विकास, राजस्व, गृह और किसान कल्याण विभाग के मंत्री शामिल किए गए हैं। गो-कैबिनेट’ निर्णयों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी इन छह विभाग की होगी। गो-कैबिनेट की पहली बैठक हो चुकी है जिसमें गौ-आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए और आगर-मालवा में स्थित गो-अभयारण्य में गो-उत्पादों के निर्माण के लिए एक अनुसंधान केंद्र स्थापित करने का फैसला लिया गया है।
इसी क्रम में शिवराज सरकार गायों के कल्याण के लिये अलग से टैक्स लगाने की योजना बना रही है। साथ ही मुख्यमंत्री ने प्रदेश में गौशाला संचालन के लिए कानून बनाने, और आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों को अंडे के बजाय गाय का दूध दिये जाने की भी घोषणा की है।
नेटफ्लिक्स पर प्रसारित वेब सीरीज़ ‘अ सूटेबल बॉय’ के एक एपिसोड में मंदिर के अंदर चुंबन के दृश्य दिखाने पर भी शिवराज सरकार की प्रतिक्रिया काफी सख्त रही है। दरअसल मीरा नायर के इस वेब सीरीज़ को लेकर भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय सचिव गौरव तिवारी द्वारा आरोप लगाया गया था कि इसमें एक किसिंग सीन मध्यप्रदेश के महेश्वर क़स्बे के मंदिर में फिल्माया गया है, जिससे लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं। गौरव तिवारी द्वारा आरोप लगाया गया था कि इस वेब सीरीज़ की पटकथा में मुस्लिम युवक को हिंदू महिला के प्रेमी के तौर पर मंदिर प्रांगण में किसिंग करते हुये दिखाया गया है जिससे लव-जिहाद को बढ़ावा मिलता है। इससे हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचा है। इसके बाद मध्यप्रदेश पुलिस ने आईपीसी की धारा 295 ए (धार्मिक भावनाओं के आहत होने संबंधी धारा) के तहत नेटफ्लिक्स के दो अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली है।
इसी कड़ी में इंदौर में हास्य कलाकार मुनव्वर फारुकी पर हिंदू देवी-देवताओं को लेकर तथाकथित आपत्तिजनक टिप्पणियों को लेकर शिवराज सरकार द्वारा की गयी कारवाई पर भी सवाल उठ रहे हैं। मुनव्वर फारुकी को भारतीय दंड विधान की धारा 295-ए (धार्मिक भावनाओं को आहत करने), धारा 298 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से जान-बूझकर कहे गए शब्द) के तहत गिरफ्तार किया गया था। हालंकि बाद में इस सम्बन्ध में पुलिस द्वारा कहा गया कि उन्हें देवी-देवताओं के अपमान वाला मुनव्वर का कोई भी वीडियो नहीं मिला है।
पिछले साल दिसम्बर माह में प्रदेश के मालवा क्षेत्र के तीन जिलों उज्जैन, इंदौर व मंदसौर में एक ही पैटर्न की घटनाएं सामने आयी हैं। इन इलाक़ों में राम मंदिर निर्माण निधि संग्रह के लिए हिंदूवादी संगठनों द्वारा आक्रमक रैलियाँ निकाले जाने और हिंसा की घटनायें हुयी हैं। हिंदूवादी संगठनों पर आरोप है कि वे जान-बूझकर मुस्लिम इलाक़ों में रैलियां निकाल रहे थे और इन इलाकों में वे नारेबाजी करते हुये डीजे बजा रहे थे जिसकी वजह से यहां पत्थरबाजी और फिर तनाव व हिंसा की स्थिति बनी। इस दौरान हुयी हिंसा में अधिकतर मुस्लिम समुदाय के लोगों की संपत्तियों का नुकसान हुआ है। पुलिस और प्रशासन पर भी भीड़ को ना रोकने और हिंदूवादी संगठनों के लोगों का बचाव करने के आरोप लगे हैं। इस मामले में गिरफ्तारियां भी मुस्लिम समुदाय के लोगों की हुयी हैं। एसोसिएशन आफ प्रोटक्शन आफ सिविल राइट्स की फैक्ट फाइंडिंग में इन घटनाओं को पूर्व सुनियोजित बताया गया है। इन सबके बीच मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केवल पत्थरबाज़ों के खिलाफ बोलते हुये इसके खिलाफ सख़्त कानून बनाने की बात कही है। मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट्स के मुताबिक़ इस कानून के तहत अगर पत्थरबाजी की वजह से किसी सरकारी संपत्ति या जानमाल का नुकसान होता है तो इसकी भरपाई पत्थरबाजी करने वालों से ही की जाएगी। ऐसे मामलों में आरोपी की संपत्ति को बेचकर भी नुकसान की भरपाई की जा सकती है। साथ ही अगर अगर किसी धार्मिक स्थल की आड़ में पत्थरबाजी की जाती है, तो उस धार्मिक स्थल को भी अधिग्रहित किया जा सकता है। अल्पसंख्यक संगठनों का कहना है कि इस नए कानून को लाने का असल मकसद उनको निशाना बनाना है।
पुराना सिलसिला
मध्यप्रदेश में अल्पसंख्यकों की अपेक्षाकृत कम आबादी होने के बावजूद माहौल साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील रहा है। मध्यप्रदेश में “गाय” और “धर्मांतरण” ऐसे हथियार हैं जिनके सहारे मुस्लिम और ईसाई अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना बहुत आसान और आम हो गया है। अब इसमें “लव जिहाद” के शगूफे को भी शामिल कर लिया गया है। अपने पिछले कार्यकालों के दौरान शिवराजसिंह चौहान भले ही खुद को विनम्र और सभी वर्गों का सर्वमान्य नेता दिखाने की कोशिश करते रहे हों, लेकिन इसी के साथ ही वे बड़ी मुस्तैदी और बारीकी के साथ प्रदेश में संघ का एजेंडा लागू करते रहे हैं।
भाजपा ने मध्यप्रदेश में सत्ता में आने के बाद 2004 में ही ‘मध्यप्रदेश गौवंश वध प्रतिशेष अधिनियम’ लागू कर दिया था। 2012 में इसे और अधिक सख्त बनाने के लिये इसमें संशोधन किया गया जिसमें गौ-वंश वध के आरोपियों को स्वयं अपने आप को निर्दोष साबित करने जैसा प्रावधान जोड़ा गया। मध्यप्रदेश के भाजपा सरकार द्वारा स्कूलों में योग के नाम पर “सूर्य नमस्कार” अनिवार्य करने की कोशिशों को लेकर कई वर्षों से विवाद रहा है। राज्य सरकार द्वार लम्बे समय से स्कूलों में “सूर्य नमस्कार” को अनिवार्य बनाने की कोशिशें की जाती रही हैं जिसका कई मुस्लिम और ईसाई संगठनों की तरफ से लगातार विरोध किया जाता रहा है। इन सबके बावजूद 2007 में राज्य सरकार ने सरकारी स्कूलों में सूर्य नमस्कार, मंत्रोच्चारण और प्राणायाम को अनिवार्य बना दिया था। इसके बाद यह मामला कोर्ट में गया। जिसके बाद 24 जनवरी 2007 को जबलपुर हाईकोर्ट की ओर से जारी एक अंतरिम आदेश में कहा गया है कि राज्य सरकार किसी भी विद्यार्थी को सूर्य नमस्कार के लिए बाध्य नहीं कर सकती है। इसके बाद साल 2009 में जबलपुर हाईकोर्ट पीठ द्वारा कैथोलिक बिशप काउंसिल आफ मध्यप्रदेश की याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया गया कि वह शैक्षणिक संस्थाओं में सूर्य नमस्कार और प्राणायम को अनिवार्य नहीं करे. साल 2016 में एक बार फिर राज्य के स्कूल एवं उच्च शिक्षा राज्य मंत्री द्वारा घोषणा की गयी कि सूर्य़ नमस्कार को सूबे के स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा और प्रत्येक शनिवार को आयोजित होने वाली बाल सभा की कार्यसूची में सूर्य़ नमस्कार को शामिल किया जाएगा।
मध्यप्रदेश में मिड-डे मील में बच्चों को अंडा देने को लेकर काफी पुराना विवाद रहा है। दरअसल प्रदेश में कुपोषण की भारी समस्या है। सूबे के 40 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं। कुपोषण के सबसे ज्यादा शिकार आदिवासी बहुल जिले हैं। कुपोषण से निपटने के लिए अंडा एक अच्छा पोषक आहार हो सकता है। लेकिन मिड डे मील में अंडा परोसने के प्रस्ताव को मध्यप्रदेश सरकार द्वारा कई बार ठुकराया जा चूका है। इसको लेकर लगातार राजनीति होती रही है। इसको लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कहते रहे हैं कि “जब तक मैं मध्यप्रदेश का सीएम हूं, मिड डे मील में अंडा नहीं बांटा जाएगा, मानव शरीर शाकाहारी खाने के लिए बना है और इसे शाकाहारी खाना ही दिया जाना चाहिए।” पिछले दिनों उन्होंने आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों को अंडे के बजाय गाय का दूध दिये जाने की भी घोषणा की है। गौरतलब है कि अधिकांश कुपोषित बच्चे आदिवासी और दलित समुदाय से आते हैं जो कि अमूमन मांसाहारी है और अंडा उनके खानपान में शामिल रहा है और अगर किसी बच्चे के घर में पहले से अंडा खाया जाता है और वो मिड डे मील में अंडा खाना चाहता है तो उस पर रोक लगाने का कोई औचित्य नहीं होना चाहिए।
कांग्रेस का रुख
मध्यप्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर कमलनाथ के आने के बाद से कांग्रेस लगातार नरम हिन्दुतत्व के रास्ते पर आगे बढ़ी है और इस दौरान विचारधारा के स्तर पर वो भाजपा की बी टीम बन कर रह गयी है। 2018 के विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान कमलनाथ ने ऐलान किया था कि ‘मध्यप्रदेश में कांग्रेस के सत्ता में आने पर उनकी सरकार प्रदेश के हर पंचायत में गोशाला बनवायेगी और इसके लिये अलग से फंड उपलब्ध कराया जायेगा। कमलनाथ अभी भी उसी लाईन पर चलते हुये दिखाई पड़ रहे हैं। शिवराज सरकार के “गौ–कैबिनेट” गठित करने के निर्णय पर उन्होंने कहा है कि ‘2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान शिवराज सिंह और भाजपा ने गायों के लिए एक अलग विभाग (मंत्रालय) स्थापित करने का वादा किया था, लेकिन अब केवल ‘गो-कैबिनेट’ की स्थापना की जा रही है। यही नहीं कमलनाथ ने आरोप लगाया है कि “शिवराज सरकार ने गोमाता के संरक्षण व संवर्धन के लिए कुछ भी नहीं किया, उल्टा कांग्रेस सरकार द्वारा गोमाता के लिए बढ़ाई गई चारा राशि को भी कम कर दिया है।” हालांकि इसके बावजूद भी गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा कमलनाथ के सॉफ्ट हिन्दुत्व को सिर्फ स्टंट मानते हैं।
हालांकि कांग्रेस ने शिवराज सरकार के “लव जिहाद” के खिलाफ कानून बनाने की घोषणा पर यह कहते हुये विरोध जताया है कि मध्यप्रदेश में महिला अपराध बढ़ रहे हैं सरकार को पहले उस ओर ध्यान देना चाहिये और इस विधेयक की जगह सरकार को महिला अपराध रोकने के लिए कोई विधेयक लाना चाहिए लेकिन अभी तक इस पर कमलनाथ या किसी और बड़े नेता का बयान नहीं आया है। शायद इसीलिये गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कांग्रेस से यह पूछा था कि वो प्रस्तावित विधेयक के पक्ष में हैं या खिलाफ में?
जावेद अनीस भोपाल में रहते हैं। सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर लेखन के अलावा वे स्थानीय जनवादी आन्दोलनों से भी जुड़े हुए हैं।