एलिएनर बर्क लीकॉक

परिवार, निजी संपत्ति एवं राज्य की उत्पत्ति में एंगेल्स ने प्रारंभिक मानव इतिहास के उस दौर की सामाजिक एवं आर्थिक अवस्थाओं का क्रमिक खाका पेश किया है जब मानव समाज जीविका के साधनों पर दिनोंदिन विजय प्राप्त करता जा रहा था। यह किताब मार्क्स की मृत्यु के बाद लिखी गई थी मगर इसमें मार्क्स और स्वयं एंगेल्स के पुराने नोट्स का काफी सहारा लिया गया था। यह किताब मानवशास्त्री लेविस हेनरी मॉर्गन की 1877 में प्रकाशित ऐन्शियेंट सोसायटी नामक किताब पर आधारित थी। 1884  में एंगेल्स ने लिखा था कि मॉर्गन ने अपने ढंग से ... अमेरिका में इतिहास की उस भौतिकवादी अवधारणा का अन्वेषण किया जिसे मार्क्स 40 साल पहले समझ चुके थे। मार्क्स और एंगेल्स के योगदान के फलस्वरूप मॉर्गन के सैद्धांतिक निहितार्थ, खासतौर से वर्गों और राज्य की उत्पत्ति के संबंध में दिए गए उनके सिद्धांतों में एक अलग तरह का पैनापन गया था। हालांकि एंगेल्स की किताब आदिम और प्रारंभिक शहरी समाज के बारे में उपलब्ध ज्यादातर साहित्य और शोधों से काफी पहले लिखी गई थी मगर इतिहास की रूपरेखा के विषय में उनका मोटा खाका आज भी उतना ही उपयोगी है।

एंगेल्स जिन सवालों को उठाते हैं उन्हें हम मोटे तौर पर तीन शीर्षकों में बांट सकते हैं : () मानवता के इतिहास में विकास की अलग-अलग अवस्थाएं, () संपत्ति, स्टेटस/हैसियत, पारिवारिक रूपरेखा और वंश व्यवस्था के लिहाज से आदिम समाज का स्वरूप, तथा () कमोडिटी उत्पादन, आर्थिक वर्गों और राज्य का उदय।

मॉर्गन का फोकस अलग-अलग समाजों के सामाजिक ताने-बाने के ब्यौरों, ऐतिहासिक घटनाओं के निहितार्थों, नए आविष्कारों से पैदा हो रही समस्याओं और उन कदमों पर केंद्रित था जिनसे नए संबंध पैदा होते थे। उनकी मुख्य खोज बहुत बड़े धरातल की थी और उनकी किताब पढ़ने से अपरिमित समझ हासिल होती है। मॉर्गन एक व्यावहारिक विद्वान, गहरी अंतर्दृष्टि से युक्त व्यक्ति थे मगर सिद्धांत के प्रति उतने प्रतिबद्ध नहीं थे। वह ना तो द्वंद्ववादी थे और ना ही भौतिकवाद के धरातल पर ही स्थिर दिखाई पड़ते थे। उत्पत्ति में एंगेल्स ने मॉर्गन के चिंतन में उठाये गए इन्हीं महत्वपूर्ण मुद्दों को लिया और उनको एक नया पैनापन दिया। इन अंतर्दृष्टियों की मदद लेते हुए उन्होंने प्रारंभिक इतिहास की तीन मुख्य अवस्थाओं में भेद किया। उन्होंने आदिम औरसभ्य समाजों में भरण-पोषण के आधार और सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था के बीच बनने वाले संबंधों में भेद किया और वर्ग संबंधों राज्य के उदय की महत्वपूर्ण अवस्थाओं को चिन्हित किया।

अवस्थाओं की अवधारणा

पदार्थ के समेकन में आने वाली क्रमिक अवस्थाओं के वर्गीकरण को समाज विज्ञानों के मुकाबले प्राकृतिक विज्ञानों में ज्यादा सहज रूप से स्वीकार कर लिया जाता है। भौतिक जगत कीचीजों को एक वाजिब ढर्रे में बिठाने की पराभौतिकीय चेष्टाओं और इन चेष्टाओं की विफलताओं से पैदा होने वाली निशानियों से प्राकृतिक विज्ञान बहुत हद तक छुटकारा पाने में कामयाब रहे हैं। उदाहरण के लिए, ये सहज स्वीकृत मान लिया गया है कि पादप और जंतु जगत के बीच आने वाले रूपों का अस्तित्वपादप औरजंतु श्रेणियों को अवैध सिद्ध नहीं करता बल्कि उन प्रणालियों को ही सामने लाता है जो पादप से जंतु की ओर विकास की प्रक्रिया में कार्यशील थीं। जब हमें ये पता चलता है कि व्हेल एक मछली नहीं है, तो इससे स्तनधारी प्रक्रियाओं की हमारी समझदारी को विस्तार और गहराई ही मिलती है। ऐसे अन्वेषण के बादमछली की श्रेणी पर सवाल उठाने की बजाय हम इस बात पर जोर देते हैं कि यह श्रेणी सिर्फ समुद्र में निवास के आधार पर परिभाषित नहीं की जा सकती बल्कि इसका कहीं ज्यादा व्यापक आधार है। चंद शिकारी, संग्राहक और मछुवाही समाजों ने ऐसी संस्थाएं विकसित कीं जो आमतौर पर कृषि की विकास की अवस्था के बाद ही सामने आती हैं, यह जानकारी खाद्य संग्राहक और खाद्य उत्पादक समाजों के भेद के महत्व को खारिज नहीं कर सकती। बल्कि, इस तरह के समाजों की पड़ताल करने से इस आशय की हमारी समझदारी को और बल ही मिलता है कि ये भेद क्यों महत्वपूर्ण है। इससे ये भी स्पष्ट होता है कि कुल मिलाकर शिकारी-संग्राहक और प्रारंभिक कृषि समाजों के बीच सामाजिक व्यवस्था के धरातल पर कितने गहरे फर्क थे।

ऐतिहासिकअवस्थाओं पर इसके बाद जो चर्चाएं और विमर्श हुए हैं, उनमें एक साधारण भ्रम को अकसर नजरअंदाज किया जाता रहा है। मसला ये है कि बहुत सारे लोग किसी काल के बारे में सार्थक प्रश्न पूछने के लिए अवस्थाओं की परिभाषा को एक अनिवार्य प्रस्थानबिंदु मानने और स्वयं उन अवस्थाओं को उत्तर मानने के बीच भेद नहीं कर पाते।अवस्थाएं उत्पादक संबंधों की संरचना में बड़े विकल्पों को परिभाषित करती हैं; वे ऐतिहासिक प्रक्रिया के अध्ययन की एक अवधारणात्मक रूपरेखा मुहैया कराती हैं। किसी समाज को एक या अधिक अवस्थाओं के प्रसंग में केंद्रीय अथवा संक्रमणकालीन स्थिति में रखना अन्वेषण की ओर बढ़ने की एक प्रारंभिक अनिवार्यता भर है ना कि अन्वेषण की सीमाओं को तय करने वाली चौहद्दी।

प्रारंभिक साम्यवाद

मॉर्गन नेप्राचीन जेंट्स की मुक्ति, समानता भाईचारे का उल्लेख किया था और लिखा था किसमाज की प्रारंभिक अवस्थाओं में संपत्ति पर कब्जे के प्रति गहरी चाह नहीं थी।इस तरह के समाजों में उत्पादन के संबंधों को परिभाषित करते हुए एंगेल्स ने लिखा कि वेबुनियादी तौर पर सामूहिक थे औरउपभोग वृहत्तर या लघु साम्यवादी समुदायों में उत्पादों के प्रत्यक्ष वितरण से निर्धारित होता था।श्रम का विभाजन केवल लिंग पर आधारित था और अभी समाज शोषकों और शोषितों के वर्गों में विभाजित नहीं हुआ था। जमीन साझा होती थी और उपकरण बर्तन उन्हीं के होते थे जो उनका इस्तेमाल करते थे। एंगेल्स ने आगे लिखा कि सामाजिक समूह के अलावा कोई राजनीतिक संगठन नहीं था। समाज केबाहर और ऊपर दिखने वाले राजनीतिक नेता की तुलना में इन समाजों का चीफसमाज के मध्य में खड़ा दिखाई देता था।सार्वजनिक मामलों में सभी वयस्कों की सहभागिता सहज प्रदत्त मान ली जाती थी। एंगेल्स के शब्दों में, किसी अमेरिकन इंडियन से यह पूछना भी बेतुका दिखाई पड़ता कि किसी सामाजिक जिम्मेदारी को निभाना उसकाअधिकारहै या उसकीजिम्मेदारी है। ये कुछ ऐसा ही प्रश्न होता मानो आप पूछ रहे हों किसोना, खाना या शिकार करना आपका अधिकार है या आपकी जिम्मेदारी है।

एक आदिम साम्यवाद की अवस्था को सामने रखकर नहीं दिखाया जा सकता था लिहाजा इसके एक अपेक्षतया निश्चित साक्ष्य के रूप में फ्रेंक जी स्पेक ने अपने लेखन में यह निर्विवाद मान लिया गया  कि मॉन्टगनाई इंडियन, लेब्राडोर पेनीन्सुला के शिकारी अपनी जमीनों को पट्टियों याशिकारगाहों में बांट लेते थे। स्पेक ने जताया कि इन पट्टियों पर लोगों का व्यक्तिगत मालिकाना होता था और वे पिता से पुत्र को मिलती जाती थीं। यह कथित खोज  मानवशास्त्र की पुस्तकों शोध पत्रिकाओं में प्रमाणिक मान ली गयी। स्पेक ऐसली ने लिखा की ये खोजें उन लोगों को जुरूर दिक्कत देती होंगी जो मॉर्गन या वर्तमान रूसियों की तरह निम्न शिकारी समाजों की संस्कृति में निजी संपत्ति से पहले की अवस्था देखते हैं।

स्पेक ने जिन इंडियंस के बीच काम किया था, उन्हीं के बीच अपने अभिलेखागारीय और फील्ड शोध के आधार पर मैंने यह पाया कि यहां फर के व्यापार के फलस्वरूप शिकारगाहों के मालिकाने की व्यवस्था पैदा हो गई थी लेकिन यह जमीन पर वास्तविक कब्जे या स्वामित्व की व्यवस्था नहीं थी। लोग किसी और के इलाके की सीमा के आस-पास जाकर जाल नहीं बिछा सकते थे मगर दूसरों की जमीन पर जाकर आखेट के लिए जानवरों का शिकार कर सकते थे, वहां मछली पकड़ सकते थे या लकड़ी, बेर या पेड़ों की छाल आदि इकट्ठा कर सकते थे बशर्ते इन चीजों का संग्रह बिक्री के लिए नहीं बल्कि सिर्फ उपभोग के लिए किया जा रहा हो।

एक-संगी संबंधों और महिलाओं की अधीनता की शुरुआत

जिन पन्नों में एंगेल्स ने प्रारंभिक वैवाहिक रूपों पर चर्चा की है वे पुस्तक में सबसे कठिन दिखाई पड़ते हैं। इसका आंशिक कारण ये है कि कुटुंब संबंधी शब्दावली और व्यवहार पेचीदा अपरिचित मालूम पड़ते हैं और जैविक एवं सामाजिक शक्तियों के भेद से चर्चा का एक उल्लेखनीय हिस्सा अपना पैनापन खो देता है।

 


मगर, एंगेल्स की बुनियादी थीम बहुत साफ है। वह लिखते हैं : “हमें... शादी के मोटे तौर पर तीन प्रकार दिखाई पड़ते हैं जो मानव विकास की तीन मुख्य अवस्थाओं से कमोबेश मेल खाते हैं। जंगली युग (सेवेजरी) के काल में सामूहिक विवाह, बर्बर युग में जोड़ों में विवाह और सभ्यता के काल में एक-संगी विवाह...।एक-संगी विवाह पॉलीगाइनी/बहुसंगी संबंधों की संक्रमणकालीन अवस्था से पैदा हुआ जिसमें पुरुषों के पास अपने अधिकार में कई दासियां होती थीं।पुरुष वर्चस्व के साथ-साथपरस्त्रीगमन और वेश्यावृत्ति से भी इसे बल मिलता था तथा शुरू से ही एक-संगी विवाह केवल महिलाओं के लिए नियत था। स्पष्ट शब्दों में कहें तो समूचे शास्त्रीय युग में विवाह खुलेआम बहु-संगी प्रथा थी और बाद में भी परोक्ष रूप से यह चलती रही।

एक-संगी विवाह की प्रमुख खासियत थी एकल परिवार को समाज की मूलभूत आर्थिक इकाई के रूप में स्थापित कर देना जिसके भीतर स्त्री और उसके बच्चे एक पुरुष पर आश्रित हो जाते हैं। शोषणपरक वर्ग संबंधों के साथ आए इस बदलाव ने महिलाओं के उत्पीड़न की स्थितियां पैदा कीं जो आज तक कायम हैं। इस रूपांतरण के समतुल्य या इसके लक्षण के तौर पर आप ये देख सकते हैं कि वंश को आगे बढ़ाने का श्रेयमातृ अधिकार (मातृवंशीयता) सेपितृ अधिकार में रूपांतरित हो गया। मानवशास्त्र या एंथ्रोपोलॉजी के क्षेत्र में सबसे ज्यादा ध्यान इस आखिरी प्रस्ताव पर ही दिया गया है कि पितृवंशीयता से पहले मातृवंशीयता की अवस्था प्रचलित थी। एंगेल्स की शेष चर्चा को लगभग नजरअंदाज किया जाता रहा है।

प्रारंभिक सामुदायिक समाज में पुरुषों के श्रम के सार्वजनिक जगत और महिलाओं के पारिवारिक श्रम के निजी जगत के बीच कोई खास भेद नहीं था। विशाल सामूहिक परिवार ही समुदाय था और स्त्री-पुरुष, दोनों इसी के भीतर जीवन के लिए अनिवार्य चीजें पैदा करते थे। वस्तुओं का उत्पादन उपभोग प्रत्यक्ष किया जाता था; अभी वे विनिमय योग्यकमोडिटी में रूपांतरित नहीं हुई थीं - जिस रूपांतरण से मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण और महिलाओं के और सघन उत्पीड़न की व्यवस्था ने जन्म लिया।

चूंकि प्रारंभिक सामुदायिक समाज में फैसले उन लोगों द्वारा लिए जाते थे जो उनको लागू करते थे इसलिए सामाजिक रूप से अनिवार्य श्रम में महिलाओं की बड़े पैमाने पर सहभागिता की बदौलत वे नितांत दासता की अवस्था में नहीं पहुंचीं जैसा कि वर्गीय समाज में दिखाई देता है बल्कि उन्हें अपने योगदान की तुलना में निर्णय लेने की शक्तियां भी प्राप्त थीं।

मानवशास्त्रीय साहित्य में इस बिंदु की समझदारी बहुत सीमित है। इसकी बजाय, प्रारंभिक समाजों में शिकार युद्ध संबंधी फैसलों पर पुरुषों के वर्चस्व के आधार पर यही तर्क ज्यादा दिया जाता है कि पश्चिमी अर्थ में दरअसल वही उन समाजों केशासक हुआ करते थे।

लेब्राडोर पेनिन्सुला के नासकापी शिकारी समुदायों में महिलाओं की स्थिति आज के मुकाबले पहले काफी मजबूत थी। सत्रहवीं शताब्दी के जेसुइट मिशनरियों ने अपने अनुभवों के आधार पर लिखा है कि वहांमहिलाओं के पास ज्यादा अधिकार हैंऔरयोजनाओं, कामों, यात्राओं, शरतकालीन व्यवस्था के बारे में फैसले लेने का अधिकार लगभग हर स्थिति में गृहिणी के हाथ में होता है।  एक जेसुइट मिशनरी एक आदमी को इस बात के लिए खरी-खोटी भी सुनाता है कि वहमालिक की तरह बर्ताव नहीं करता, वह उसे हिदायत देते हुए कहता है किफ्रांस की औरतें अपने आदमियों पर राज नहीं किया करतीं।

औरतें अपने पतियों की आज्ञा का पालन करें, ये सुनिश्चित करना (ईसाई) मिशनरियों की एक मुख्य चिंता बन गया था, खासतौर से इसके कारण पैदा होने वाली यौन आजादी के प्रसंग में। उनका कहना था कि किसी औरत को अपने पति के अलावा किसी और से प्रेम करना शोभा नहीं देता और उनके व्यक्तित्व में यह शैतानी तत्व (महिलाओं की यौन आजादी) की बदौलत पति को खुद ये विश्वास नहीं होता कि उसका बेटा सचमुच उसी का बेटा है।  इस पर नासकापी का जवाब बड़ा दिलचस्प है : “तुम्हें कुछ पता नहीं है। तुम फ्रेंच लोग सिर्फ अपने बच्चों से प्रेम करते हो। हम अपने कबीले के सारे बच्चों से प्रेम करते हैं।

इस तरह के समुदायों के एकांगी ब्यौरों में जिस तरह की स्टीरियोटाइप छवियां पेश की जाती हैं, मसलन, पुरुष शिकार करते हैं और महिलाएं मेवे इकट्ठा करती हैं और बच्चों की देखभाल करती हैं - इस प्रचलित छवि की तह में क्या कुछ है, इसको उजागर करने के लिए मैं केवल एक उदाहरण दूं तो काफी होगा। एक खास दिन, पुरुष लगभग पूरे दिन धैर्यपूर्वक बैठा रहा, महज कुछ सप्ताह के अपने बीमार शिशु की देखभाल करता रहा। उसकी पत्नी व्यस्त थी। पिता अपने बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर परेशान तो था मगर वह इस जिम्मेदारी को निभाने में किसी तरह भी परेशान या कुंठित महसूस नहीं कर रहा था और ना ही उसने किसी और स्त्री को मदद के लिए आवाज लगाई। इस दौरान उसकी पत्नी एक मरे हुए जानवर की खाल उतार रही थी जिसके लिए उसे अपने कुशल हाथों और एकाग्रता की जरूरत थी। पुरुष खाना पकाना और बच्चों की देखभाल करना जानते थे मगर ये नहीं जानते थे कि चमड़ा कैसे निकाला जाता है।

कई मायनों में यह हमारे समाज में अलगाव की सबसे सघन अवस्था है कि जन्म देने की क्षमता को एक बोझ में रूपांतरित कर दिया गया है। इसका कारण सिर्फ यह नहीं है कि चूंकि महिलाएं बच्चों को जन्म देती है इसलिए उनकी आवाजाही और गतिविधियां सीमित हो जाती हैं। जैसा कि अब तक की चर्चा से संकेत मिलता है, ये बात तो शिकारी-संग्राहक जीवन के सीमित तकनीक वाले युग में भी बोझ नहीं थी। लिहाजा आज तो इस तर्क का कोई मतलब ही नहीं बनता है। ना ही महिलाओं की निम्नतर हैसियत पुरुषों द्वारा खेती शुरू करने और उसमें महिलाओं के कम महत्व से थी। ना ही ऐसा मवेशियों के बढ़ते महत्व से ऐसा हुआ था। हालांकि मवेशियों को चराना महिलाओं की हैसियत में गिरावट का संकेत जरूर था। मगर, बुनियादी बात ये थी कि ये संक्रमण उभरते शोषणपरक संबंधों के प्रसंग में सामने आए जहां सामुदायिक स्वामित्व कमजोर पड़ रह था, सामुदायिक कुटुंब समूह टूट रहा था और एकल परिवार एक पृथक तथा दुर्बल इकाई के रूप में समाज से अलग होता जा रहा था और वह नई पीढ़ी के सदस्यों के भरण-पोषण पालन पोषण के लिए जिम्मेदार था। महिलाओं की अधीनता का आधार ये था कि परिवार को समुदाय से पृथक कर देने के जरिए महिलाओं के सामाजिक रूप से अनिवार्य श्रम को एक निजी सेवा में रूपांतरित कर दिया गया था। इसी संदर्भ में महिलाओं के घरेलू और दूसरे काम लगभग दासता जैसी स्थितियों में अंजाम दिए जाने लगे।

कुटुंब या समुदाय से परिवार की पृथकता तथा एक-संगी विवाहों का प्रचलन निजी संपत्ति की व्यवस्था के उदय की सामाजिक अभिव्यक्ति थी। तथाकथित एक-संगी संबंधों से ये सुनिश्चित किया जा सकता था कि संपत्ति एक ही पुरुष और उसके वंशजों के पास जाती रहे। कुछ लोगों के लिए निजी संपत्ति का अर्थ था दूसरों के लिए किसी भी तरह की संपत्ति से बेदखली, या विभिन्न सामाजिक समूहों में उत्पादन के अलग-अलग संबंधों का विकास। एंगेल्स की व्याख्या का मूल पुरुष के वर्चस्व वाली आर्थिक इकाई के रूप में परिवार के उदय और वर्गों के उदय के अंतरंग संबंधों में निहित है।


प्रसिद्ध मार्क्सवादी नारीवादी मानवशास्त्री एलिएनर  बर्क लीकॉक की सन १९७१ में एंगेल्स की पुस्तक ओरिजिन ओफ़ फैमिली, प्राइवेट प्रोपर्टी एंड स्टेट के पुनर्प्रकाशित संस्करण की भूमिका का संक्षिप्त अनुवाद

 (मूल अंग्रेजी से अनुवाद- योगेन्द्र दत्त )